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यूथ डे के अवसर पर आज स्वामी विवेकानंद का एक सूत्र वाक्य बरबस याद आ गया. अमेरिका में एक चर्च में जुटी पब्लिक को एड्रेस करते हुए एक बार उन्होंने कहा था कि वेस्टर्न कल्चर यकीनन मॉडर्न है. वो अच्छा भी है लेकिन इस संस्कृति के पोषकों से मेरा एक निवेदन भी है. स्वामी जी ने कहा कि आप अपने इस विश्वास पर पूरी ईमानदारी के साथ हमेशा कायम रहना. उन्होंने कहा कि मेरा आपसे ही नहीं दुनिया के समस्त मानव मात्र और खासकर युवा पीढ़ी से गुजारिश है कि वे सच्चाई का रास्ता अख्तियार करें. इस मार्ग को वे जिंदगी में तब तक अपनाएं जब तक कि उनकी रूह, उनका दिल और उनकी जिंदगी सत्य से प्रकाशित न हो जाए.
स्वामी जी का यह सूत्र वाक्य शायद आज ज्यादा प्रासंगिक हो उठा है. इसमें कोई शक नहीं है कि आज नेक्स्ट जेन जागरूक हो उठी है. वो अपने आसपास के तमाम मसलों से अवेयर है. वो अपने इर्द गिर्द होने वाली घटनाओं पर रिएक्ट करती है. सोच समझ कर कदम उठाती है. उसे अपने अच्छे बुरे का पूरा खयाल है. वो अपने करियर से लेकर जिंदगी तक के फैसले खुद करती है. वो बिंदास है और ऊंची उड़ान उडऩा चाहती है. एकजुटता भी उनमें काफी है. अन्ना आंदोलन से लेकर दिल्ली गैंग रेप तक जुटी भीड़ इन सारी बातों की तस्दीक करती है. लेकिन यहीं सवाल ये भी उठता है कि क्या यह सब काफी है? क्या यूथ अपनी ताकत का एडवांटेज ले पा रहा है?
सवाल इसी तरह के कई और भी हैं लेकिन इन सबका जवाब सिर्फ एक ना है. दरअसल उसकी वजह भी युवा ही हैं. उन्हें अपनी ताकत का एहसास तो है लेकिन वो ये नहीं समझ पा रहे हैं कि कोई और उन्हें यूस कर रहा है. वो जुट के भीड़ तो बन जा रहे हैं लेकिन संगठित नहीं है. वो जिंदगी की सच्चाई को पूरी शिद्दत के साथ जी तो रहे हैं लेकिन उस पर उस पर उन्हें यकीन का एहसास कम है. शायद यही हमारी सोसायटी में तमाम तरह की विसंगतियों के पनपने का कारक बन गया है. आज वक्त की मांग है कि युवा वर्ग अपने अंदर निहित कस्तूरी को फील करे. वो इस बात को समझे कि जोश होना अच्छी बात है लेकिन इसके साथ होश बरकरार रखना भी जरूरी है. आज ऐसे वक्त में जब वाई जेन खुद को क्रॉस रोड पर खड़ा महसूस कर रही हो स्वामी विवेकानंद का अमेरिकी गिरजाघर में दिया उद्बोधन याद आना स्वाभाविक है. हम ठीक कह रहे हैं ना ?
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