- 21 Posts
- 42 Comments
कई बार किसी न्यूज की हेड लाइन आपको सोचने के लिए मजबूर करती है. चीजों को एनालिसिस करने पर विवश करती है. पीछे मुड़ कर देखने के लिए प्रेरित करती है. आज भी तमाम अखबारों में एक हेड लाइन ऐसी ही थी ‘नये साल में महंगी होंगी कार’. उसमें यह दिया गया था कि फलां फलां कम्पनी ने अपनी कई मॉडल्स के रेट में इजाफा करने का फैसला किया है. इस न्यूज ने किसी को चौंकाया नहीं बल्कि यह सोचने के लिए विवश किया है कि क्या चढ़े हुए रेट कभी वापस लौटते भी हैं. कार तो एक नजीर है. आप अपनी जरूरत की दूसरी चीजों पर गौर कर लीजिए साहब किसी एक के बारे में भी हम कह नहीं सकते कि अमुक चीज का दाम अपने पुराने पॉइंट पर लौट आया. गैजेट्स से लेकर इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स तक और सोने से लेकर रियल इस्टेट तक. कभी कोई लुढ़कता नहीं दिखा.
वक्त के साथ चीजों के दाम में हेरफेर होना नेचुरल है. आबादी बढ़ी तो डिमांड चढ़ी. जाहिर है सप्लाई कम होगी तो रेट बढ़ेंगे लेकिन किसी एक खास वक्त में डिमांड में स्टैगनेंसी का आना भी तो लाजमी है. हो सकता है लोग तमाम चीजों के रेट के बारे में इस पर सहमत ना हों लेकिन कम से कम रियल इस्टेट और मेटेल मार्केट के बारे में तो हामी भरेंगे ही. आप पलट के देख लीजिए कब बढ़ा हुआ सोना अपने पुराने रेट पर वापस लौटा या आपके अपने शहर में जमीन के दाम कब कम हुए. इस मामले में एक अच्छा उदाहरण पेट्रो प्रॉडक्ट का भी दिया सकता है. पेट्रोल या डीजल के दाम का बढऩा या घटना इंटर नेशनल मार्केट कि सिचुएशन पर डिपेंड करता है. उसकी एक वजह हमारे अपने सूबे का टैक्सेशन भी है. आप देख लीजिए दाम बढ़े और कई बार कम भी हुए लेकिन चढऩे का ग्राफ उतरने के मुकाबले बहुत ज्यादा रहा.
शायद इन सबकी असल वजह हमारे सिस्टम के पास कोई मुकम्मल नीति का न होना भी है. इंडियन मार्केट पर यहां के प्लेयर्स हावी हैं. वो जब चाहते हैं सिस्टम की चूलें हिलाते हैं. किसी भी कमोडिटी के रेट पर गवर्नमेंट का कोई कंट्रोल नहीं है. रूलिंग ही नहीं तमाम दूसरी पॉलिटिकल पार्टीज भी इन प्लेयर्स से उपकृत होती रहती हैं. ऐसे में कॉरपोरेट सेक्टर का हावी होना स्वाभाविक है. एक इंडियन कंज्यूमर की यह चाहत कतई नहीं है कि आप उसे बीस साल पुराने रेट पर चीजें मुहैया कराएं लेकिन उसकी यह डिमांड जरूर है कि रेट को किसी एक जगह पर ले जाकर रोक दिया जाए. इसके अलावा वो रेट कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक ही हो. पेट्रोल बेशक एक सौ रुपए लीटर बिके लेकिन यही रेट रांची में भी हो और इंदौर में भी. जब इस मुल्क में कानून एक है तो दाम में फर्क क्यों हो? शायद ये डिमांड गलत नहीं है. आप इससे सहमत हैं ना ?
Read Comments