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कोई उन्हे रोको ना!

Gokarn Banarasi
Gokarn Banarasi
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अक्सर हम टेलेंट हंट की बात तो करते हैं लेकिन क्या हमने अपने यहां के चुनिंदा फील्ड्स के टेलेंट के पलायन को रोकने के बारे में भी कभी सोचा है? शायद नहीं. यह एक ऐसा मसला है जिस पर हम शायद गौर ही नहीं करते. खबर है कि अभी हाल ही में किये गये एक सर्वे के मुताबिक दुनिया में अगर कहीं सबसे ज्यादा प्रतिभा पलायन हो रहा है तो वह भारत में है. सर्वे में पता चला था कि टेलेंट के मुल्क से निकल जाने के मामले में हिन्दुस्तान की सिचुएशन सैंडविच सरीखी है. एक तो यहां कि मेधा डेवलप्ड कंट्रीज की तरफ निकल जा रही है और दूसरे अन्य देशों के प्रतिभावान लोग भारत की तरफ रुख नहीं करना चाहते. मतलब भारत को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है.
ऐसा नहीं है कि यह सब अचानक से हो गया है. प्रतिभा पलायन भारत की पुरानी समस्या रही है. आजादी के पहले से लेकर आजादी के बाद आज आधी सदी से भी ज्यादा वक्त गुजर जाने के बावजूद हालात में कोई बदलाव नजर नहीं आता. इंजीनियर्स और डॉक्टर्स का वेस्टर्न कंट्रीज की तरफ अट्रैक्ट होना शाश्वत बना हुआ है. वहां रिसर्च वर्क में मिलने वाली फैसिलिटी और डॉलर में मिलने वाला पैकेज हर किसी को अपनी ओर खींचता है. हम हिन्दुस्तानी भी इससे इतर नहीं हैं. हमने अपने यहां साइंस, कम्प्यूटर और मैथमेटिक्स से जुड़े क्षेत्र में ऐसा कुछ खास नहीं कर सके हैं कि समंदर पार के लोगों को अपनी ओर अट्रैक्ट कर सकें. इस सर्वे में पूछा भी गया कि ऐसी क्या बात है जो इंडिया उन्हें अट्रैक्ट नहीं कर पा रहा? जो जवाब मिला वो चौंकाने वाला था. विदेशी मेधावियों का कहना था कि यहां इंफ्रास्ट्रक्चरल जो दिक्कतें हैं वो तो हैं ही इसके अलावा यहां वर्किंग प्लेसेज में पॉलिटिक्स बहुत है.
सच कहें तो इस जवाब ने हमें आइना दिखाया है. प्रतिभा पलायन को रोकने कि कोशिश तो छोडिय़े हमने इसके लिए कभी इच्छाशक्ति भी नहीं दिखायी. हमने अपने यहां काम करने कि जगहों के माहौल में बेटरमेंट के बारे में कभी सोचा ही नहीं. राजनीति को हवा दी. सारी चीजों के लिए सिस्टम का मुंह ताका. इंडुविजुअली कभी कोई पहल की ही नहीं. अगर हम अपने आसपास बिखरे टेलेंट को अपने देश में ही बने रहने के लिए इनकरेज करना शुरु कर दें तो शायद कभी कोई इंजीनियर मुल्क छोड़ कर जाएगा ही नहीं. आज रिसर्च करने की चाहत रखने वाले मैक्सिमम इंडियन्स अमेरिका जाना चाहते हैं. हमें उसकी वजहों को तलाशना होगा. उसके अनुरुप अपने यहां सिचुएशन पैदा करना होगा. काम का माहौल अगर बेहतर हो जाए तो शायद सैलेरी और पैकेज जैसे मसले गौण हो जाते हैं. आज दरकार इस एटमॉस्फियर की ही है. चलिए आज हम रखते हैं आने वाले कल के भारत की नींव और रचते हैं एक नया रचना संसार. आप हमारे साथ इसमें शामिल होंगे ना ?

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